बरेली का देसी जादू! इस दुकान पर हाथों से बनते हैं फैंसी फर्नीचर

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बरेली का देसी जादू! इस दुकान पर हाथों से बनते हैं फैंसी फर्नीचर


बरेली: अगर आप कभी बरेली घूमने आएंगे तो कोतवाली के पास एक खास दुकान जरूर ध्यान खींचेगी. यहां पर हाथों से बना बांस फर्नीचर अपनी खूबसूरती और कारीगरी की चमक बिखेरता है. ये सिर्फ एक दुकान नहीं, बल्कि बरेली के उस पुश्तैनी कारोबार की मिसाल है, जो आज देशभर में अपनी पहचान बना चुका है.

बांस से जुड़ा यह कारोबार करीब 40- 45 साल पुराना है. इस दौरान शहर की कई पीढ़ियां इस परंपरागत काम को आगे बढ़ाती रही हैं. खास बात ये है कि यहां बॉस यानी बांस को सिर्फ लकड़ी समझकर नहीं, बल्कि एक बहुउपयोगी संसाधन की तरह देखा जाता है. इसे काटा, गढ़ा और फिर कारीगरी से सजाया जाता है. इसके बाद कुर्सियां, टेबल, झूले, सोफा और जरूरत के ढेर सारे घरेलू सामान तैयार होते हैं.

पंजाब से लेकर दिल्ली तक इसकी धूम
कोतवाली के पास मौजूद इस फर्नीचर शॉप से बॉस का सामान सिर्फ बरेली के आस-पास ही नहीं, बल्कि पंजाब, लखनऊ, दिल्ली, इटावा जैसे बड़े शहरों तक भेजा जाता है. कई व्यापारियों ने इसे ऑनलाइन माध्यमों से भी जोड़ना शुरू कर दिया है, जिससे ऑर्डर देशभर से आने लगे हैं.

हाथ की मेहनत और पुश्तैनी हुनर
इस काम की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यह अब भी मशीनों से नहीं, बल्कि हाथों से किया जाता है. कारीगर एक-एक बांस की छड़ी को छांटते हैं, फिर उसे मनचाहे आकार में ढालते हैं. फिर चाहे बच्चों का छोटा झूला हो या फिर किसी कैफे का पूरा सेटअप सब कुछ बॉस से तैयार होता है.

रोजगार भी दे रहा है ये कारोबार
इस व्यवसाय से न सिर्फ एक परिवार की आजीविका चल रही है, बल्कि आसपास के कई लोग भी इससे जुड़े हुए हैं. कई कारीगर ऐसे हैं जो सालों से इसी फर्नीचर शॉप में काम कर रहे हैं. कुछ ने तो यहीं काम सीखकर खुद की छोटी दुकान भी खोल ली है.

लोगों की पसंद बना देसी डिजाइन
एक ओर बाजार में महंगे और मशीनी फर्नीचर की भरमार है. वहीं इस तरह के देसी और टिकाऊ फर्नीचर की मांग भी बनी हुई है. ग्राहक कहते हैं कि बॉस का बना सामान हल्का भी होता है. इसके अलावा देखने में भी आकर्षक लगता है.

नए जमाने के साथ बदलता तरीका
हालांकि समय के साथ कारीगरों ने डिजाइनों में भी बदलाव किए हैं. अब मॉडर्न टच के साथ पारंपरिक डिजाइन तैयार किए जा रहे हैं, जो नई पीढ़ी को भी खूब पसंद आते हैं. यही वजह है कि बरेली का यह पारंपरिक कारोबार आज भी टिके हुए है और फैलता जा रहा है.



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