आखिर क्यूं बंद हुआ MDH मसाला। क्या था कारण ? जनता के उड़ गए होश।

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आखिर क्यूं बंद हुआ MDH मसाला। क्या था कारण ? जनता के उड़ गए होश।

तो जैसा कि हम सभी को पता है, धूम्रपान और शराब एक मनुष्य के सेहत के लिए हानिकारक है। इससे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है। हार्ड अटैक के चांसेस बढ़ सकते हैं लेकिन, आज के इस नए भारत में अगर कोई अपने खाने में स्वाद डालना चाहे तो वह भी आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो चुका है।

 5 अप्रैल 2024 को हांगकांग के फूड सेफ्टी केंद्र की तरफ से एक पहले नोटिफिकेशन आई थी । उन्होंने MDH के तीन मसाले का नाम लिया जिसमें से मद्रास कड़ी पाउडर, करी पाउडर, और सांभर मसाला, इसके अलावा एक एवरेस्ट का प्रोडक्ट फिश करी मसाला इन सब में एथिलीन ऑक्साइड की बहुत ज्यादा मात्रा पाई गई । कई देशों में तो इसका इस्तेमाल करना पूरी तरह से बंद है। 

सिंगापुर देश की फूड एजेंसी ने अलग से टेस्टिंग करी और एवरेस्ट के फिश करी मसाले में भी यही चीज पाई। 

4 मई 2024 को सिंगापुर , हांगकांग मालदीव्स के देशों ने इन मसाले को अपने देश में बंद कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया ,न्यूजीलैंड और नेपाल के देशों की फूड एजेंसी अपनी अलग से टेस्टिंग कर रही है । और जल्द ही वहां पर भी इन्हें बंद किया जा सकता है।

क्या हुआ जब MDH मसाले की जांच हुई ।

FFSAI की तरफ से एक रिस्पांस यह आया कि इन्हें 20 दिन चाहिए। इन मसाले के टेस्टिंग करने के लिए फिर यह देखेंगे कि यह हानिकारक है या नहीं । यहां पर एक आम आदमी ने टेस्टिंग कर ली और कुछ ही दिनों के अंदर टेस्ट रिजल्ट आ भी गए।

 उस व्यक्ति ने 23 अप्रैल 2024 को उसने 50 ग्राम मसाले का सैंपल भेजा और 26 अप्रैल 2024 को रिपोर्ट तैयार भी होकर आ गई।  क्या पाया गया इस मसले में  एथिलीन  ऑक्साइड की मात्रा 7.57 मिलीग्राम पर किलोग्राम की कंस्ट्रेशन में मौजूद है। इसकी लिमिट है 0.1 मिलीग्राम पर किलोग्राम यानी कि ए लिमिट से 70 गुना ज्यादा मात्रा में कैंसर कॉजिंग केमिकल मौजूद था ।

क्या है? एथिलीन ऑक्साइड कैमिकल

   इसका संक्षिप्त रूप EO या ETO है।  यह जीवाश्म ईंधन का एक उपोत्पाद है। और इसके अनेक औद्योगिक उपयोग है लेकिन इस मामले में जो उपयोग प्रासंगिक है वह है ।

मसालों का धूम्रीकरण क्यूमिगेशन शब्द का अर्थ है।  कीटाणु रहित करना या रोगाणुरहित करना।  भोजन में हानिकारक सूक्ष्म जीवों और जीवाणु को मारना एथिलीन ऑक्साइड  का उपयोग गैस के रूप में किया जाता है।  क्योंकि गैस पैकेजिंग सामग्री के माध्यम से बहुत आसानी से प्रवाहित होती है। और इसका उपयोग चीजों को कीटाणु रहित करने के लिए आसानी से और कुशलता पूर्वक किया जा सकता है। 

 यह गैस अपने आप में कलरलेस है।  इसी कारण है यह दिखाई नहीं देता।  लेकिन फ्लेमेबल जरूर है यानी कि इसमें आग लग सकती है। इस पर इसे ईकोलाई और साल्मोनिल जैसे हार्मफुल बैक्टीरिया को मारा जा सकता है। साथ ही साथ फंगस के खिलाफ भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। 

जानने वाली बात यह है की फसल उगाते समय इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता। बल्कि में मसाले को पैकेजिंग करते समय इसका इस्तेमाल किया जाता है। तो अगर मसाले में  एथिलीन ऑक्साइड की बहुत ज्यादा मात्रा पाई जा रही है। तो इसमें किसान की कोई गलती नहीं है। 

बल्कि में उसे कंपनी की जिम्मेदारी है जो हावेस्ट ट्रीटमेंट के दौरान और पैकेजिंग करने से पहले एथिलीन ऑक्साइड का इस्तेमाल कर रही है।  एथिलीन ऑक्साइड एक ऐसा केमिकल है इसके सेवन से कैंसर का डायरेक्ट लिंक है।  और कई देशों में इसका इस्तेमाल करना पूरा तरह से बंद है। 

साल्मोनेला क्या है

साल्मोनेला एक बैक्टीरिया होता है । यह आमतौर पर संक्रमाणित जानवरों से प्राप्त अधपके खाद्य पदार्थ जैसे की चिकन या अंडे  खाने से होता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कई जानवर  साल्मोनेला बैक्टीरिया से संक्रमित होते हैं ।

साल्मोनेला के लक्षण ;-

साल्मोनेला संक्रमण के 6 घंटे या 6 दिन बाद लक्षण दिखने लगते हैं। इसमें खूनी दस्त ,बुखार ,और पेट में ऐंठन शामिल है।  ज्यादातर लोग एंटीबायोटिक उपचार के बिना 4दिन से 7 दिनों के भीतर ठीक हो जाते हैं।  लेकिन गंभीर दस्त वाले कुछ लोगों को अस्पताल में भर्ती होने या एंटीबायोटिक लेने की जरूरत पड़ सकती है। 

अमेरिका में MDH शिपमेंट को अस्वीकार कर दिया गया था। इसका कारण साल्मोनेला था। हैरानी की क्या बात यह है की ETO का उपयोग साल्मोनेला जैसे बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है।  यहां कुछ मसाले में ETO का स्तर उच्च होता है। 

 जबकि कुछ सालमोनेला से संदूषित होते हैं अमेरिका के FDA ने खुलासा किया कि अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के बीच अमेरिका में आयतित थे MDH मसाले में से 15 %को

 साल्मोनेला के कारण अस्वीकार कर दिया गया। 

पैन इंडिया क्या है ? इसमें क्या अध्ययन किया गया।

पैन इंडिया का पूरा नाम पेस्टिसाइड्स एक्शन नेटवर्क इंडिया है। 

इसके द्वारा एक अध्ययन किया गया उसमें मिला कि भारत में प्रयुक्त 275 कीटनाशकों में से लगभग 255 विषैला हैं। तथा 56 कैंसरकारी है ।

यह अध्ययन 2017 में किया गया था। आज हमारे देश में 292 से अधिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।  इसमें बच्चे सबसे ज्यादा असुरक्षित है। 

क्योंकि इससे उनके मस्तिष्क की वृद्धि और विकास प्रभावित होता है। कुछ लोग जैविक भोजन को उसका समाधान मान सकते हैं।  यह एक अच्छा विकल्प है लेकिन जैविक भोजन के साथ दो समस्याएं हैं-

पहला की कितने लोग उसे भोजन को खरीद सकते हैं और दूसरी समस्या यह है कि वह भारत में जैविक खाद को भी अमेरिका और यूरोप में जोखिम वाली श्रेणी में रखा है। 

 11 जनवरी 2021 को अमेरिका के कृषि विभाग ने भारत के कृषि और प्रांस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के साथ अपना समझौता समाप्त कर दिया। इस समझौते के अनुसार भारतीय व्यवसाय भारत में उत्पादित जैविक खाद के लिए USDA प्रमाणन का उपयोग कर सकेंगे लेकिन अमेरिका इस समझौते से पीछे हट गया।  यह कह के की भारत का जो जैविक प्रणाली है वह अप्रप्ति है। वह हमारे मानकों को पूरा नहीं कर सकेगा। 

 किसानों को दोषी बताया जा रहा है मिलावट के नाम पर ।

BMC पब्लिक हेल्थ के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में हर साल 11,000  कीटनाशक के कारण किसान अपनी जान गंवाते हैं। 

 इनमें से लगभग 6,500 किसान समान्यत: भारतीय है।  इसका मतलब यह है कि अपनी जान गवाने वाले 60% किसान सिर्फ हमारे देश के हैं हालांकि यह संख्याएं में कम बताई गई है। 

 और किसान की सुरक्षा के सुनिश्चित करने के लिए कोई कानून नहीं है सुरक्षा प्रदान करने की बात तो दूर जब खाद्य पदार्थों में किसी भी प्रकार के मिलावट होती है। तो लोग किसान को ही दोषी ठहराया करते हैं। 

लेकिन जैसा की एथिलीन ऑक्साइड का संदूषण उत्पादन के कारण नहीं होता बल्कि यह भंडारण ( स्टोरेज )और उत्पादन के बाद के करण में होता है। और कीटनाशकों की बात करें तो कंपनी किसानों पर इतना दबाव डालती है। कि उन्हें अधिक से अधिक कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। 

किसानों को यह बताया जाता है कि उन्हें अच्छी फसल तभी मिलेगी जब वह भरपूर मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करेंगे।

इन सब में किसान की कोई गलती नहीं है उन्हें जो बताया जाता है वह वही करते हैं

 2015 की बैठक में क्या हुआ ?

2015 में हमारी सरकार ने डॉक्टर अनुपम वर्मा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति की थी। इस समिति में 66 कीटनाशकों की समीक्षा की जो किसी न किसी देश में प्रतिबंधित है। 

 लेकिन भारत में अभी भी उपयोग में ले जाते हैं जब इस समिति ने अपने रिपोर्ट प्रस्तुत की तो उसमें सिफारिश की कि सरकार इनमें से कम से कम 13 कीटनास्को  पर प्रतिबंध लगाए और 6 अन्य कीटनाशको को 2020 तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाए। 

 लेकिन सरकार ने इस समिति की बात सुनने में 4 साल लगा दिए जनवरी 2019 में अतः 12 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।  और दिसंबर 2020 तक 6 को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना बनाई गई थी। 

सरकार ने 5 साल की  देरी कर दी कार्रवाई करने में इसके अलावा 14मई 2020 को केंद्र सरकार ने एक मसौदा आदेश जारी किया।  जिसके अनुसार उतीलखित 66 कीटनाशकों में से 27 पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। और कुछ समय बाद एक नोटिफिकेशन आता है। कि 27 में से 3 पर ही प्रतिबंध लगाया जाएगा ।

“यही कुछ अध्ययन किया गया 2015 में डॉक्टर अनुपम वर्मा जी के साथ

 MDH मसाला कंपनी का सालाना इनकम कितना है 

MDH मसाला कंपनी सालाना करीब 1500 करोड रुपए का कारोबार करती थी। MDH  मसाला कंपनी के संस्थापक धर्मपाल गुलाटी ने महज 1500 रुपए से इस कारोबार की शुरुआत की थी। धर्मपाल गुलाटी जी के मसाला किंग के नाम से जाना जाता था

धर्मपाल गुलाटी के बारे में कुछ और खास बातें;-

  • धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1918 को 

सियालकोट पाकिस्तान में हुआ था।

  • धर्मपाल गुलाटी ने पांचवी कक्षा तक पढ़ाई की थी। 
  • धर्मपाल गुलाटी ने साल 1959 में MDH मसाला कंपनी की स्थापना की थी।
  • धर्मपाल गुलाटी जी का 3 दिसंबर 2020 को 97 साल की उम्र में  निधन हुआ  था ।
  • धर्मपाल गुलाटी के बाद उनके बेटे राजीव गुलाटी ने MDH मसाला कंपनी संभाली। 

MDH मसाले के कौन कौन से मासलों पर बैन लगा है

MDH के कुछ मसले पर हांगकांग और सिंगापुर ने बिक्री पर रोक लगा दिया है। इन मसाले में स्वीकार सीमा से ज्यादा कीटनाशकों और  एथिलीन ऑक्साइड पाए जाने का दावा किया गया है।

नेपाल में भी इन मसाले पर रोक लगा दिया है। इस मामले  में भारतीय मसाले बोर्ड जांच कर रहा है। भारत ने सिंगापुर और हांगकांग के खाद्य नियम  को जानकारी मांगी है 

यह तीन मसाले पर बैन लगा है-

  1. मद्रास करी पाउडर 
  2. मिक्सर मसाला पाउडर 
  3. सांभर मसाला 

और एवरेस्ट के फिश करी मसले पर बैन लगा है। MDH के पास आज 62 उत्पादों को एक श्रृंखला है जो ISD से अधिक विभिन्न पैकेजों में उपलब्ध है इनमें पीछे हुए और मिश्रित मसाले शामिल है जो परीक्षकों से मुक्त हैं। 

-निष्कर्ष-

सही मायने में इसका जो समाधान है। वह केवल सरकार से ही आ सकता है। यदि सरकार सख्त नियम लागू करती है। यदि एक व्यक्ति के रूप में हमें जैविक खाद्य पदार्थ खरीदने का प्रयास कर सकते हैं। तो आप किसी किसान को जानते हैं। तो सीधे उनसे उपज खरीदें ताकि आप उसकी गुणवत्ता के बारे में आश्रष्ट हो सके क्योंकि स्टोरेज में समस्याएं थी 

 इसलिए अगर संभव हो तो  ताजा उपज खरीदने का प्रयास करें जितना हो सके उतना जैविक पदार्थ खाएं अगर आपके किसी किसान पर संदेह है। तो आप अगर गांव जैसे इलाके से हैं तो आप खुद खाने की पदार्थ  उगाए और खाएं ।

“सही मायने में इसका हल सरकार ही निकल सकती है अगर किया जाए तो”

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