कफ सिरप की तस्करी कैसे बनी करोड़ों का खेल? STF ने जैसे ही पकड़ा बर्खास्त सिपाही, सामने आया पूरा सिंडिकेट

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कफ सिरप की तस्करी कैसे बनी करोड़ों का खेल? STF ने जैसे ही पकड़ा बर्खास्त सिपाही, सामने आया पूरा सिंडिकेट


लखनऊ: कफ सिरप मामले तस्करी सिंडिकेट मामले में सिपाही आलोक सिंह का नाम आने के बाद उसके खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी कर दिया गया था. अब उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने कफ सिरप तस्करी सिंडिकेट से जुड़े बड़े नेटवर्क का खुलासा करते हुए बर्खास्त सिपाही आलोक सिंह को लखनऊ से गिरफ्तार कर लिया है. बताया जा रहा है कि आलोक आज कोर्ट में सरेंडर करने की तैयारी में था. उसने लखनऊ कोर्ट में सरेंडर अर्जी भी दाखिल की थी और मंगलवार को इस पर एसटीएफ को कोर्ट में रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन उससे पहले ही कार्रवाई करते हुए एसटीएफ ने उसे दबोच लिया.

पूछताछ में उगले तस्करी सिंडिकेट के राज

एसटीएफ की गिरफ्त में आने के बाद आलोक सिंह ने पूछताछ में कफ सिरप तस्करी नेटवर्क को लेकर कई अहम जानकारी दी. उसने बताया कि आजमगढ़ निवासी विकास सिंह के जरिए उसकी पहचान शुभम जायसवाल से कराई गई थी. शुभम एबॉट कंपनी के फैंसिडिल कफ सिरप के अवैध कारोबार से जुड़ा था और रांची (झारखंड) में शैली ट्रेडर्स के नाम से फर्म चलाता था.

कोडीनयुक्त फैंसिडिल सिरप का नशे के रूप में उपयोग होने के कारण इसकी बड़ी मांग पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में रहती है. विकास सिंह ने आलोक को इस तस्करी के फायदे बताए, जिसके बाद आलोक सिंह और उसका साथी अमित टाटा इस नेटवर्क में शामिल हो गए. एसटीएफ पहले ही अमित टाटा को गिरफ्तार कर चुकी है.

फर्जी फर्मों के जरिए कारोबार का विस्तार

पूछताछ में खुलासा हुआ कि शुभम जायसवाल और उसके पार्टनर वरुण सिंह, गौरव जायसवाल और विशाल मेहरोत्रा के जरिए आलोक सिंह ने अवैध कारोबार शुरू किया. 2024 में धनबाद में आलोक के नाम पर ‘श्री मेडिकल एजेंसी’ के नाम से एक फर्म खोली गई. इस फर्म का पूरा लेनदेन शुभम और उसकी टीम व उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट तुषार की ओर से संभाला जाता था. धनबाद की इस फर्म में आलोक और अमित टाटा ने 5-5 लाख रुपये निवेश किए, जबकि बदले में शुभम ने दोनों को लगभग 20-22 लाख रुपये मुनाफा दिया.

जानकारी के अनुसार, धनबाद और रांची में फर्म का संचालन वरुण सिंह करता था. इसके बाद बनारस में ‘मां शारदा मेडिकल’ के नाम से एक और फर्म आलोक के नाम से खोली गई, जिसका संचालन भी शुभम की टीम ही कर रही थी. इसी फर्म के जरिए आलोक को करीब 8 लाख रुपए प्राप्त हुए. हालांकि, फर्म खुलने के दो–तीन महीने बाद ही एबॉट कंपनी ने फैंसिडिल बनाना बंद कर दिया.

गिरफ्तारियां और भागा सरगना

एसटीएफ और पुलिस की ओर से गैंग के सदस्यों सौरभ त्यागी और विभोर राणा को गिरफ्तार किए जाने के बाद इस सिंडिकेट का सरगना शुभम जायसवाल अपने परिवार और साथियों, वरुण सिंह और गौरव जायसवाल के साथ दुबई फरार हो गया. शुभम कई फर्जी फर्मों के नाम पर फर्जी बिल, ई-वे बिल और कागजात बनाकर फैंसिडिल की अवैध खरीद–फरोख्त दिखाता था, जबकि असल में पूरा माल तस्करों को बेचकर भारी मुनाफा कमाया जाता था.

फर्जी दस्तावेजों से हासिल किया ड्रग लाइसेंस

आलोक सिंह ने फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र और शपथ पत्र के आधार पर ड्रग लाइसेंस हासिल किया था. अमित टाटा की गिरफ्तारी के बाद उसने कोर्ट में सरेंडर की अर्जी लगाई थी. एसटीएफ अब आलोक को कस्टडी रिमांड में लेकर आगे की पूछताछ करेगी, ताकि नेटवर्क के बाकी सदस्यों और वित्तीय लेनदेन की पूरी जानकारी मिल सके. गौरतलब है कि आलोक के खिलाफ 2006 में लखनऊ के आशियाना थाने में डकैती का मामला भी दर्ज हो चुका है.



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