गाजीपुर का ‘भूला-बिसरा’ गांव! अंग्रेजों के घोड़े, सरकारी फैक्ट्रियां…और फिर सन्नाटा! क्यों डूबे प्रसादपुर के सपने?

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गाजीपुर का ‘भूला-बिसरा’ गांव! अंग्रेजों के घोड़े, सरकारी फैक्ट्रियां…और फिर सन्नाटा! क्यों डूबे प्रसादपुर के सपने?


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Ghazipur News: गाजीपुर का प्रसादपुर गांव अपनी उपजाऊ जमीन और खाली प्लॉट के लिए जाना जाता है. लेकिन यहां की अधूरी योजनाएं और इतिहास भी इसे खास बनाते हैं. आज भी गांव में खाली प्लॉट और अधूरी परियोजनाएं इसकी विकास य…और पढ़ें

Ghazipur: गाजीपुर का प्रसादपुर गांव बेहद ऐतिहासिक है, इसका इतिहास ही इसे सबसे अलग बनाता है. यह गांव पुलिस लाइन छावनी के अंतर्गत आता है और ग्राम पंचायत इसकी देखरेख करती है. यह गांव खाली प्लॉट और उपजाऊ खेतों के लिए जाना जाता है, जो इसे खास बनाते हैं. लेकिन गांव की कहानी सिर्फ खेत और प्लॉट तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका इतिहास और अधूरी योजनाएं भी इसे दिलचस्प बनाती हैं.

सत्यनारायण सिंह, आदर्श बौद्ध स्कूल में इतिहास के शिक्षक, बताते हैं कि अंग्रेजों के समय में इस इलाके को सब्जी और खेती करने वालों के लिए बसाया गया था. इसलिए वर्तमान में यहां कुशवाहा जाति के लोग मुख्य रूप से कृषि मूल समुदाय के हैं. धीरे-धीरे अंग्रेजों ने यहां अपने घुड़सवार और अस्तबल भी बनाए, और इसी इलाके से घोड़े पर सवारी करके पूरे क्षेत्र का निरीक्षण करते थे.

स्वतंत्रता के बाद की अधूरी योजनाएं
स्वतंत्रता के बाद सरकार ने इस गांव में चमड़ा उद्योग के लिए 10 बीघा का प्लॉट अलॉट किया था, लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो सकी और प्लॉट खाली पड़ा रह गया. जो चमड़ा उद्योग खुलना था, वह आखिरकार कानपुर में स्थापित हुआ.

1970 का दशक में औद्योगिक प्रयास
1970 के दशक में जिला समाज कल्याण विभाग ने अनुसूचित जातियों के लिए फैक्ट्री लगाई, जिसमें बैलगाड़ियों और रिंग वाले टायरों का इस्तेमाल हुआ. करीब 5 से 7 साल तक यह कार्य चलता रहा, लेकिन फिर यह भी बंद हो गया. कुछ लोग बुनाई, चारपाई, बढ़ईगीरी और प्लास्टर ऑफ पेरिस जैसे काम करने लगे, लेकिन वे भी कुछ सालों बाद यहां से चले गए.

आज भी इस गांव में लगभग 10 बीघा का प्लॉट खाली है. कई जगहों पर गौशालाएं स्थापित की गई हैं, जिसमें लोग सेवा के नाम पर योगदान देते हैं. गांव की जमीन उपजाऊ है और गाय-भैंस चरती रहती हैं, लेकिन यह क्षेत्र अब भी अपनी पूरी क्षमता का लाभ नहीं उठा पा रहा है.
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अधूरी रह गई सभी योजनाएं
सत्यनारायण सिंह कहते हैं, “इतिहास और योजनाओं के बावजूद इस गांव को अब तक कोई वास्तविक लाभ नहीं मिला. खाली प्लॉट और अधूरी योजनाएं यह दर्शाती हैं कि विकास की गति अभी भी ठहराव में है. यदि सही दिशा में निवेश और सुविधा मिलती, तो यह गांव कृषि और उद्योग दोनों में एक मिसाल बन सकता था.”

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