झांसी की रानी को किले से सुरक्षित निकालने वाली थीं ये 3 बहादुर महिलाएं…

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झांसी की रानी को किले से सुरक्षित निकालने वाली थीं ये 3 बहादुर महिलाएं…


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Jhansi Latest News: 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई की रक्षा में तीन वीरांगनाओं सुंदर, मुंदर और जूही ने अपनी जान कुर्बान कर दी. जानिए कैसे इन तीनों ने रानी को किले से सुरक्षित बाहर निकलने में मदद की और इतिह…और पढ़ें

हाइलाइट्स

  • 1857 की क्रांति में झांसी की तीन वीरांगनाओ ने दिया था रानी लक्ष्मीबाई का साथ.
  • सुंदर, मुंदर और जूही तीन वीरांगनाओ ने रानी लक्ष्मी के लिए बलिदान दिया.
  • इतिहास ने आज इन तीनों वीरांगनाओ को भुला दिया.

झांसी: इतिहास सिर्फ राजाओं और सेनापतियों की गाथाएं नहीं होता, बल्कि उन गुमनाम वीरों और वीरांगनाओं की कहानियां भी होती हैं, जिनके बलिदान से आज का भारत बना है. 1857 की क्रांति में जहां रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, तात्या टोपे और गुलाम गौस खान जैसे नामों को खूब याद किया गया, वहीं कुछ ऐसे भी योद्धा रहे, जिन्हें इतिहास ने नजरअंदाज कर दिया. इन्हीं में से तीन नाम हैं – सुंदर, मुंदर और जूही. ये वही तीन वीरांगनाएं हैं, जिन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को किले से सकुशल बाहर निकालने में अपनी जान की बाजी तक लगा दी थी.

रानी लक्ष्मीबाई की खास सहेलियां
प्रसिद्ध साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा ने अपनी किताब ‘झांसी की रानी’ में इन तीनों का ज़िक्र किया है. वह लिखते हैं कि जब रानी लक्ष्मीबाई का विवाह गंगाधर राव से होना था और वह गणेश मंदिर जा रही थीं, तभी एक लड़की रथ पर चढ़ी और खुद को जूही बताकर दासी कहा. रानी ने कहा, “अगर दासी बनना है तो उतर जाओ, अगर सहेली बनना है तो साथ चलो.” इसके बाद सुंदर और मुंदर भी इसी तरह रथ पर चढ़ीं और रानी ने उन्हें भी सहेली का दर्जा दिया.

रानी ने खुद सिखाया तलवारबाजी और युद्ध कौशल
शुरुआत में ये तीनों सिर्फ गायन और नृत्य जानती थीं, लेकिन रानी ने उन्हें घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध की सभी जरूरी कलाएं सिखाईं. खेल-खेल में शुरू हुई यह ट्रेनिंग, आगे चलकर असली युद्ध में बदल गई. रानी लक्ष्मीबाई को जब झांसी का किला छोड़ना पड़ा, तो इन तीनों ने उनका साथ निभाया.

जान की बाजी लगाकर बचाई रानी की जान
इतिहासकार हरगोविंद कुशवाहा के अनुसार, 7 जून की रात रानी लक्ष्मीबाई ने जब अंग्रेजों से घिरे झांसी किले को छोड़ने का फैसला लिया, तब उनके साथ ये तीनों वीरांगनाएं भी थीं. रानी ने अपने बेटे दामोदर राव को पीठ पर बांधा और किले की ऊंची दीवार की ओर निकल पड़ीं. रास्ते में अंग्रेजों ने हमला किया, तो सबसे पहले सुंदर को गोली लगी और वह शहीद हो गईं. थोड़ी दूर पर मुंदर भी वीरगति को प्राप्त हो गईं. कुदान स्थल तक पहुंचते-पहुंचते जूही को भी गोली लगी और उन्होंने भी प्राण त्याग दिए.
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