तेंदुओं का खतरा: रीवा से लेकर मेजा तक, ग्रामीणों में बढ़ा डर

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तेंदुओं का खतरा: रीवा से लेकर मेजा तक, ग्रामीणों में बढ़ा डर

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश में वन्यजीवों का आतंक एक नई चुनौती बनकर उभर रहा है। हाल ही में बहराइच, सीतापुर और प्रतापगढ़ में आदमखोर भेड़ियों का खतरा थमने के बाद अब प्रयागराज के शंकरगढ़ और आस-पास के इलाकों में तेंदुओं की बढ़ती गतिविधियां चिंता का विषय बन गई हैं।

मध्य प्रदेश के रीवा के करीब दो दर्जन और उत्तर प्रदेश के शंकरगढ़, मेजा और कोरांव क्षेत्र के चार दर्जन से अधिक गांवों में तेंदुओं की मौजूदगी ने दहशत फैला दी है।

स्थिति की वर्तमान तस्वीर

वन विभाग की कार्रवाई:
वन विभाग ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सात विशेष टीमों का गठन किया है। इन टीमों को ट्रैकिंग उपकरण और ड्रोन की मदद से तेंदुओं की गतिविधियों पर नजर रखने का जिम्मा सौंपा गया है। वन विभाग के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि वे जल्द ही तेंदुओं को सुरक्षित स्थान पर ले जाएंगे।

ग्रामीणों की प्रतिक्रिया:
स्थानीय लोगों ने बताया कि तेंदुओं के कारण वे शाम होते ही घरों से बाहर निकलने में डर महसूस करते हैं। मेजा के एक निवासी सुरेश कुमार ने कहा, “तेंदुए रात में मवेशियों पर हमला कर रहे हैं, जिससे ग्रामीणों को बड़ा नुकसान हो रहा है।”

कारण और विशेषज्ञों की राय

जानवरों के जंगल छोड़ने का कारण:
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, यह समस्या तेजी से घटते जंगलों और शहरीकरण के कारण उत्पन्न हुई है। वनों की कटाई और प्राकृतिक आवास के नुकसान ने तेंदुओं को मानव बस्तियों की ओर रुख करने के लिए मजबूर किया है।

प्रयागराज विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद् डॉ. शशि वर्मा बताते हैं, “तेंदुओं का जंगल छोड़कर गांवों की ओर आना एक गंभीर संकेत है। यह हमारे वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में सुधार की आवश्यकता को दर्शाता है।”

समस्या का समाधान क्या हो सकता है?

  1. वन्यजीव संरक्षण:
    जंगलों की कटाई पर सख्त रोक लगाना और तेंदुओं के लिए सुरक्षित अभयारण्यों की स्थापना करना आवश्यक है।
  2. ग्रामीणों की सुरक्षा:
    ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व के उपाय सिखाने की आवश्यकता है।
  3. वन विभाग की सक्रियता:
    वन विभाग को तेंदुओं को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग करना चाहिए।

तेंदुओं का भविष्य और ग्रामीणों की उम्मीदें

हालांकि ग्रामीण फिलहाल डरे हुए हैं, लेकिन वन विभाग की त्वरित कार्रवाई और विशेषज्ञों की सहायता से समस्या को जल्द हल करने की उम्मीद है।

इस घटना ने वन्यजीव संरक्षण और मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीरता को उजागर किया है। अगर सभी संबंधित पक्ष मिलकर काम करें, तो इस समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा सकता है।

संक्षेप में

यह घटना केवल तेंदुओं का नहीं, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच बढ़ते टकराव का संकेत है। इसे रोकने के लिए दीर्घकालिक योजना और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

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