दुधवा में तितलियों की रंगीन दुनिया: 160 प्रजातियों का पता, देखें विडियों

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दुधवा में तितलियों की रंगीन दुनिया: 160 प्रजातियों का पता, देखें विडियों


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दुधवा टाइगर रिजर्व में 160 प्रजातियों की तितलियों की खूबसूरती पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर रही है. यहां की सबसे बड़ी तितली सदर्न बर्डविंग और सबसे छोटी तितली ग्रास ज्वेल है.

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तितली का समूह 

हाइलाइट्स

  • दुधवा टाइगर रिजर्व में 160 प्रजातियों की तितलियाँ हैं.
  • सबसे बड़ी तितली सदर्न बर्डविंग और सबसे छोटी ग्रास ज्वेल है.
  • तितलियों की खूबसूरती पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर रही है.

अतीश त्रिवेदी/लखीमपुर खीरी. दुधवा टाइगर रिजर्व इन दिनों रंग-बिरंगी तितलियों की खूबसूरती से सराबोर है. यहां पहुंचने वाले पर्यटक जब तितलियों को उड़ते और फूलों पर मंडराते देखते हैं, तो उनकी खुशी देखते ही बनती है. तितलियों की यह बहार इस बार पर्यटकों के आकर्षण का खास केंद्र बनी हुई है, जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो रहा है.

देशभर में जहां तितलियों की लगभग 1500 प्रजातियां पाई जाती हैं, वहीं दुधवा टाइगर रिजर्व में इनमें से करीब 160 प्रजातियां देखने को मिलती हैं. तितलियां हमेशा से ही प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रही हैं. उनके रंग-बिरंगे पंख, अलग-अलग आकार और व्यवहार उन्हें पक्षियों के बाद सबसे लोकप्रिय जीवों में शामिल करते हैं. इस संबंध में जानकारी देते हुए दुधवा टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रंगा राजू टी ने बताया कि हाल ही में…

160 प्रजातियां पाई जाने का दावा 
दुधवा टाइगर रिजर्व में हाल ही में बायोलॉजिस्ट और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के सहयोग से तितलियों की गणना कराई गई, जिसमें लगभग 160 प्रजातियां पाई जाने का दावा किया गया है. यहां पाई जाने वाली सबसे बड़ी तितली सदर्न बर्डविंग है, जिसका पंख फैलाव करीब 19 सेंटीमीटर तक होता है, जबकि सबसे छोटी तितली ग्रास ज्वेल है, जिसका पंख फैलाव केवल 1.5 सेंटीमीटर होता है.

कैटरपिलर अवस्था में विकसित होती हैं विशेष क्षमताएं 
तितली एक पंख वाला कीट है, जो फाइलम आर्थ्रोपोडा, क्लास इनसेक्टा और ऑर्डर लेपिडोप्टेरा से संबंधित है. इसके पंख छत की तरह व्यवस्थित सूक्ष्म तराजू से ढके होते हैं, जो इसे आकर्षक रंग और बनावट प्रदान करते हैं. सुरक्षात्मक अनुकूलन के तहत तितलियां जीवन के हर चरण में शिकारियों से खुद को बचाने के लिए विशेष रणनीतियां अपनाती हैं. कैटरपिलर अवस्था से ही उनमें बचाव की विशेष क्षमताएं विकसित होती हैं. अधिकतर कैटरपिलर हरे या भूरे रंग के होते हैं, जिससे वे अपने खाद्य पौधों के बीच आसानी से छिप जाते हैं और शिकारियों की नजरों से बच जाते हैं.

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