पीढ़ियों से ‘जहर’ पीकर मर रहे हैं सोनभद्र के लोग, मांगने लगे इच्छा मृत्यु, धुंआ में उड़ा एनजीटी का आदेश

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पीढ़ियों से ‘जहर’ पीकर मर रहे हैं सोनभद्र के लोग, मांगने लगे इच्छा मृत्यु, धुंआ में उड़ा एनजीटी का आदेश


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Sonbhadra News Today in Hindi: 25 से 30 साल की उम्र पहुंचते-पहुंचते लोगों की कमर झुक जा रही है. वहीं, 35 साल की उम्र तक लोगों को चलने के लिए लाठी का सहारा लेना पड़ रहा है. इस क्षेत्र में लड़कों की शादी भी एक बड…और पढ़ें

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दूषित पेयजल यहां के लोगों के लिए बनता जा रहा अभिशाप

सोनभद्र: ​उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में फ्लोराइड का प्रकोप दिनों दिन भयावह होता जा रहा है. सोनांचल के सैकड़ों गांव और लाखों की आबादी इस मीठे जहर के चपेट में आने से प्रभावित हो रही है. इलाके के पड़रछ में फ्लोराइड प्रकोप इतना बढ़ गया है कि बुजुर्ग के साथ-साथ जवानों की भी हड्डियां सिकुड़ने लगी हैं. ऐसे में जवानों को लाठी का सहारा लेना पड़ रहा है. उम्रदराज लोगों को फ्लारोइड से भारी परेशानी हो रही है. कई इलाकों में उम्रदराज लोग फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा के शिकार हैं. लोग समय से पहले बूढ़े हो जा रहें तो कुछ की समय से काफी पहले मौत हो जा रही है.

दिव्यांग पैदा हो रहे हैं बच्चे
डेढ़ दशक पहले सोनभद्र में फ्लोराइड का प्रकोप सामने आने के बाद से इसकी भयावहता साल दर साल बढ़ती ही जा रही है. पर्यावरण अध्ययन से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं की रिपोर्ट बताती है कि यहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा तय मानक से बहुत ज्यादा है. जिले में एक लीटर पानी में फ्लोराइड की मात्रा तय मानक यानी एक मिलीग्राम से बढ़कर 14 मिलीग्राम तक पहुंच गई है. इसके दुष्प्रभाव से बच्चे जन्म से विकलांग हो रहे हैं. फ्लारोइड के कारण होने वाली फ्लोरोसिस की बीमार इलाके के ज्यादातर लोगों को अपने जद में ले चुकी है.

नहीं हो पा रही है शादी, लोग मांग रहे हैं इच्छा मृत्यु
फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से आठ से दस साल की उम्र में पहुंचते ही बच्चों के दांत सड़ने लग जा रहे हैं. 25 से 30 साल की उम्र पहुंचते-पहुंचते लोगों की कमर झुक जा रही है. वहीं, 35 साल की उम्र तक लोगों को चलने के लिए लाठी का सहारा लेना पड़ रहा है. इस क्षेत्र में लड़कों की शादी भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. सोनभद्र जिले के 55 वर्षीय रामचंद्र जायसवाल बताते हैं कि उनके परिवार की तीन पीढ़ी (पोते से दादा तक) फ्लोरोसिस के चलते विकलांगता की मार झेल रहा है. सरजू पटेल कम उम्र में ही बिस्तर पर पड़ गए हैं. सरजू कहते हैं कि अब वह इच्छामृत्यु चाहते हैं.

गांव के राम नरेश, सरस्वती, राजाराम, सुनीता देवी, नेहा, मधुबाला, अवधेश, सूरज, चंद्रावती, कांति देवी, बसंती, अभिषेक पटेल आदि ग्रामीणों ने फ्लोरोसिस की पीड़ा बताते हुए कहा कि यहां अब तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो सका है. प्रदूषित पानी पीना लोगों की मजबूरी बन गई है. ग्राम पंचायत से लेकर जिले तक लोगों ने आवाज उठाई लेकिन हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है. पानी में फ्लोराइड की मात्रा का तय मानक प्रति लीटर एक मिलीग्राम है. पानी में फ्लोराइड की मात्रा में बढ़ोतरी से दांतों को नुकसान पहुंचता है. इस कारण बचपन में ही दांतों का पीलापन, सड़न की समस्या दिखने लगती है. इस बीमारी को दंत फ्लोरोसिस कहते हैं.

लोगों को हो रही हैं ये दिक्कतें
जब फ्लोराइड की मात्रा पांच मिलीग्राम से ज्यादा हो जाती है, तब यह शरीर को सीधे प्रभावित करने लगता है. इससे हड्डियां कमजोर होना, हड्डियों का टेढ़ापन, असमय कमर झुकना, हड्डियों में असहनीय दर्द जैसी समस्याएं होने लगती हैं. बता दें कि सोनभद्र जिले के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 14 मिली ग्राम तक पहुंच चुकी है. दरअसल, जिले में खनिज अयस्क बहुतायत में है. भूगर्भ जल में मानक से 5-6 गुना ज्यादा फ्लोराइड होने के कारण कोन, वभनी, म्योरपुर और दुद्धी ब्लॉक के 276 गांवों की दो लाख से अधिक की आबादी प्रभावित है.

एनजीटी के आदेश का भी नहीं पड़ा कोई असर
एनजीटी के आदेश के बावजूद लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने के लिए मजबूर हैं. इस पानी के पीने से किसी के दांत काले-पीले पड़कर सड़-गल चुके हैं. लोगों की हड्डियां कमजोर और टेढ़ी हो चुकी हैं. रीढ की हड्डी इस हद तक कमजोर हो रही है कि चलने को मोहताज हैं. छोटे बच्चे भी जैसे ही पानी पीना शुरू करते हैं तो बीमार होने लगते हैं. बच्चे दिव्यांग पैदा हो रहे हैं. सीधे कहें तो पूरी नस्लें बर्बाद हो रही हैं. बड़ी संख्या में लोग बिस्तर पर हैं और असमय मौतें हो रही हैं.

बच्चों की हो रही है मौत
जिला मुख्यालय राबर्ट्सगंज से करीब 80 किलोमीटर दूर कचनरवा ग्राम पंचायत की 25,000 की आबादी है. इस ग्राम पंचायत से जुड़े मजरों, टोलों में कई सारे रिंकी और रोहित हैं. गांव वाले इन्हें ‘फ्लोराइड वाला’ कहते हैं. रिंकी के ही परिवार के मुन्नी और उनके बेटे पप्पू की छह महीने पहले मौत हो चुकी है. वैसे तो दोनों ठीक थे फिर अचानक दोनों ने बिस्तर पकड़ लिया और इलाज के अभाव में उनकी मौत हो गई. यहां की करीब 7,000 की आबादी पर फ्लोराइड का असर है.

कुड़वा ग्राम पंचायत प्रधान प्रतिनिधि सुजीत कुमार यादव ने बताया कि इस गांव में संबंधित समस्या को लेकर अधिकारी आते जरूर हैं किंतु कोई निदान निकाले बगैर वापस चले जाते हैं. यही वजह है कि आज भी समस्या उसी तरह बनी हुई है. एक और ग्रामीण ने बताया कि हम लोग तो जैसे तैसे अपना समय काट लिए किंतु आने वाली पीढ़ी के लिए यह समस्या किसी अभिशाप से कम नहीं नजर आती. अगर निदान निकाला जाए तो आगे की पीढ़ी सुधर सकती है अन्यथा इसी हाल में जीना ही विकल्प होगा. कोई सरकार अब तक इसका स्थाई समाधान नहीं दे सकी.

जाम हो जा रहा है लोगों का शरीर
एक और ग्रामीण शिवधारी ने बताया कि इस पानी की वजह से उनका शरीर पूरा जाम हो चुका है. 7 से 8 साल पहले हम बिल्कुल ठीक थे लेकिन, अब नसें पूरी तरह से जाम हो चुकी हैं. प्राथमिक विद्यालय मधुरी विकास खंड चोपन की प्रधानाध्यापिका ने बताया कि यहां के अधिकांश बच्चों में डेंटल फ्लोरिस्ट के लक्षण हैं. बच्चों के दांतों में पीलापन और शरीर स्वस्थ्य नहीं रहने जैसी समस्या देखने को मिलती है.

ग्राम पंचायत कचनरवा की 35 वर्षीय कुलवंती की कमर करीब दस साल से झुकी हुई है. वह कहती हैं कि जब शादी होकर आई थी तब एकदम ठीक थी लेकिन यहां का पानी पीने से वह ऐसी हो गई हैं. मुख्यालय से 65 किमी दूर हरदी पहाड़ के पास बसे गांव पारस पटेल नगर के लोग भी यही पानी पीने के लिए मजबूर हैं. लोगों का कहना है कि ग्राम पंचायत में डेढ़ साल पहले 2023 में फ्लोराइड रिमूवल कीट एक एनजीओ ने बांटी थी. बाद में आदेश आया की किट का भुगतान ग्राम पंचायत को अपने पास से करना है. पंचायत के पास बजट नहीं था तो दोबारा किट नहीं बांटी गई. किट की कीमत करीब 3,000 रुपए बताई गई थी.

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