ये चीज बच्चों को बना रही ‘वर्चुअल ऑटिज्म’ का शिकार, यूपी में यहां मिल रही है फ्री सलाह

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virtual autism: कई बच्चों को आपने देखा होगा या हो सकता है कि आपके घर में ही ऐसे बच्चे हों जो नाम पुकारने पर रिएक्ट न करते हों, अकेले खेलते हों, अन्य बच्चों से घुलते मिलते न हों, बार-बार हाथ हिलाते हों तो….
परामर्श देते डॉक्टर
आगरा: अगर आपका बच्चा मोबाइल या टीवी के बिना खाना नहीं खाता या मोबाइल छीनने पर खाना छोड़ देता है तो इसे केवल जिद्दीपन समझकर नजरअंदाज न करें. यह वर्चुअल ऑटिज्म का संकेत हो सकता है.
भोगीपुरा स्थित आध्यात्म फाउंडेशन ऑफ ऑटिज्म संस्था की तरफ से ऑटिज्म सप्ताह के अवसर पर दो दिवसीय जागरूकता शिविर की शुरुआत की गई. इस शिविर में 2 से 18 वर्ष तक के 30 बच्चों के अभिभावकों ने भाग लेकर विशेषज्ञों से परामर्श लिया.
मोबाइल और टीवी की अधिक स्क्रीनिंग बच्चों के लिए घातक
संस्था की निदेशक डॉ. रेनू तिवारी ने जानकारी दी कि आजकल वर्चुअल ऑटिज्म तेजी से बढ़ रहा है. मोबाइल और टीवी की अधिक स्क्रीनिंग बच्चों में इस समस्या को जन्म दे रही है. उन्होंने बताया कि ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक मानसिक स्थिति है. उन्होंने बताया कि इसे सही देखभाल, स्पीच थेरेपी और अभिभावकों को प्रशिक्षण देकर बेहतर किया जा सकता है.
विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण
नाम पुकारने पर प्रतिक्रिया न देना.
अकेले खेलना, अन्य बच्चों से मेलजोल न रखना.
बार-बार हाथ हिलाना, उछलना या घूमना.
पंजों के बल चलना, गुस्सैल और जिद्दी व्यवहार.
देर से बोलना शुरू करना.
शोर सुनकर कानों पर हाथ रख लेना.
किसी चीज की ओर इशारा करने की बजाय किसी का हाथ खींचना.
खिलौनों को लाइन से लगाना या उन्हें मुंह में डालना.
खाने-पीने की चीजों को सूंघकर जांचना.
शनिवार को सुबह 10 से दोपहर 2 बजे तक चलेगा परामर्श
शिविर में डॉ. अश्वनी श्रीवास्तव (एसएन मेडिकल कॉलेज), डॉ. नेहा तिवारी (लखनऊ), डॉ. प्रियंका मैसी और प्रिया श्रीवास्तव जैसे विशेषज्ञों ने परामर्श दिया. शिविर का दूसरा दिन शनिवार को सुबह 10 से दोपहर 2 बजे तक चलेगा. यदि समय पर पहचान कर इलाज शुरू किया जाए तो वर्चुअल ऑटिज्म से बच्चों को उबारा जा सकता है. जरूरत है अभिभावकों के जागरूक और सतर्क होने की.