राम-सीता ने यहां किया था विश्राम! मऊ का रामघाट बना करोड़ों की आस्था का प्रतीक

जब वनवास के दौरान राम पहुंचे थे रामघाट
लोकल 18 से बातचीत में शिव मंदिर के अध्यक्ष प्रिंस गुप्ता बताते हैं कि यह वही स्थान है, जहां भगवान श्रीराम वनवास के समय तमसा नदी के किनारे-किनारे चलते हुए आए थे. उन्होंने रामघाट पर ही रात्रि विश्राम किया था. उनके साथ मां सीता और लक्ष्मण भी थे. यहां उन्होंने स्नान और पूजा-अर्चना भी की थी। तभी से इस पवित्र स्थल को ‘रामघाट’ कहा जाने लगा.
राम, सीता और लक्ष्मण ने यहीं से आगे बढ़कर देवर्षि देवलास में स्थित देवर्षि मुनि से भेंट की थी. इस ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण इस घाट और मंदिर का विशेष महत्व है. श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यहां मांगी गई मन्नत अवश्य पूरी होती है, और इसी कारण यहां पूजा-पाठ और दर्शन के लिए लोगों का तांता लगा रहता है.
हर शनिवार होती है शिव चर्चा
रामघाट पर स्थित शिव मंदिर को विशेष मान्यता प्राप्त है. यहां हर शनिवार को शिव चर्चा का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर विशेष पूजा करते हैं. मंदिर की स्थापना कब हुई, इसका कोई प्रमाणिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन बीते वर्षों में इसका सुंदरीकरण कर इसे भव्य रूप दिया गया है.
यहां साल में दो बार बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. देव दीपावली पर इस घाट की रौनक देखते ही बनती है. लाखों दीप जलाकर भस्म आरती और विशेष अनुष्ठानों के साथ देव दीपावली मनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने के बाद देव दीपावली मनाई गई थी, और उसी परंपरा को यह घाट आज भी जीवित रखे हुए है.
छठ पर्व पर उमड़ता है जनसैलाब
छठ पर्व के दिन भी यह घाट श्रद्धा से सराबोर रहता है. 6वें दिन विशाल मेला लगता है और लगभग 8-10 किलोमीटर की दूरी से हजारों ग्रामीण यहां अर्घ्य देने और पूजा करने पहुंचते हैं. स्थानीय मान्यता है कि यदि कोई महिला सच्चे मन से व्रत रखकर मन्नत मांगे, तो वह मन्नत जरूर पूरी होती है.
इतिहास, पौराणिकता और आस्था का संगम
रामघाट न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह पौराणिक इतिहास और लोक आस्थाओं का संगम भी है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता, पवित्र नदी तमसा का प्रवाह और मंदिर की दिव्यता हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है.