बिना चायपत्ती वाली ये चाय, जिसे बनाने में लगते हैं डेढ़ घंटे, हर शिप सुपरहिट, खोल देगा बंद दिमाग

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Hajmola tea benefits : गाजीपुर की गलियों में 7 साल से एक आवाज गूंज रही है. जब आप उसकी दिशा में मुड़ते हैं, तो एक छोटी सी केतली लिए युवक दिखता है, जो शहर भर में घूम-घूम कर लोगों के ‘दिमाग’ खोल रहा है.
गाजीपुर. यूपी के गाजीपुर की गलियों में एक अनोखी आवाज गूंजती है, “नींबू की चाय, हाजमोला चाय!”. जब आप उस आवाज की दिशा में मुड़ते हैं, तो एक छोटी सी केतली लिए एक युवक दिखता है जो जमीन पर रखी पोर्टेबल गैस से चाय गरम कर रहा होता है. ये हैं काशी नरेश, गाजीपुर के लोकल हीरो, जो बीते 7 सालों से शहर भर में घूम-घूम कर चाय बेचते हैं. लेकिन यह कोई आम चाय नहीं, बल्कि हाजमोला नींबू चाय है. काशी नरेश इस चाय को एक से डेढ़ घंटा सुबह पकाते हैं फिर केतली में रखकर पूरे शहर में घूमने लगते हैं.
जीजा ने दिखाया रास्ता
नरेश की चाय खास इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें चाय पत्ती नहीं होती. इसकी रेसिपी में होती है नींबू, हाजमोला, दालचीनी, लौंग, काली मिर्च और हल्की चीनी. ये चाय स्वाद के साथ-साथ पाचन के लिए भी शानदार मानी जाती है. यही वजह है कि लोग ₹5 की एक कप चाय के लिए रुक जाते हैं और कहते हैं, “दिमाग खुल गया!”. नरेश बताते हैं कि पहले वह पूर्व सांसद राधामोहन सिंह के यहां मिस्त्री का काम करते थे, लेकिन उन्हें नौकरी में आजादी नहीं मिलती थी. इसलिए उन्होंने खुद का काम शुरू करने का ठाना. उनके जीजा भी यही चाय बेचते थे, उन्हीं से प्रेरणा लेकर उन्होंने केतली उठाई और शहर भर में घूमने लगे.
पूरे गाजीपुर में पहचान
वो रोज करीब 200 कप चाय बेचते हैं — यानी ₹1000 तक की आमदनी. नरेश का मानना है कि, “कम पैसे में भी काम चल सकता है, बस नाम और आजादी होनी चाहिए.” उनके जैसा मेहनती और जुगाड़ू इंसान आज कई बेरोजगार युवाओं के लिए मिसाल है. काशी नरेश कहते हैं कि नौकरी में वह मजा नहीं है जो अपने धंधे में है, अपने धंधे में सुकून हमेशा है. उनका छोटा सा ठिकाना शास्त्री नगर में है, लेकिन पहचान पूरे गाजीपुर में है.