देश में पहले भी हुए हैं कई युद्ध…तब कैसे-कैसे की गई थी ताजमहल की सुरक्षा…रमाकांत ने बताई आंखों देखी कहानी

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भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर देशभर में मॉक ड्रिल आदि के जरिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है. इसी क्रम में आगरा में भी लोगों को जागरूक किया गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं, कि देश में पहले भी युद्…और पढ़ें
ताजमहल
हाइलाइट्स
- भारत-पाक तनाव पर आगरा में मॉक ड्रिल हुई
- 1971 में ताजमहल को हरे टेंट से ढंका गया था
- 1942 में जापानी हमले की आशंका पर ताजमहल को छुपाया गया था
आगरा:- भारत और पाकिस्तान के बीच हालात लगातार तनावपूर्ण होते जा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में मारे गए पर्यटकों का बदला भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत ले लिया है. इसके बाद पाकिस्तान बुरी तरह बौखला गया है. युद्ध जैसे हालात बनते देख भारत सरकार भी पूरी तरह अलर्ट मोड में है. आम नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए देशभर में मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट की तैयारी की जा रही है, इसी क्रम में आगरा में भी मॉक ड्रिल के जरिए लोगों को जागरूक किया गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं पहले हुए युद्ध के समय ताजमहल भी छिपाया गया था. इस बारे में लोकल 18 ने जब आगरा के ताजगंज निवासी रमाकांत सारस्वत से बात की तो उन्होंने क्या बताया, चलिए जानते हैं.
आपको बता दें, भारत पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर ऐतिहासिक शहर आगरा में एक दर्जन स्थानों पर 54 साल बाद मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट किया गया. बता दें, इससे पहले ऐसा ब्लैकआउट 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान हुआ था. उस समय सायरन की एक आवाज पर लोग गुप अंधेरा कर लेते थे. खिड़की दरवाजे बिल्कुल बंद रहते थे. यहां तक कि ताजमहल जैसी इमारत को भी छुपाया गया था. आपको बता दें, 1971 के युद्ध में सुरक्षा के लिहाज से ताजमहल को ढंक दिया गया था ताकि दुश्मन के हवाई हमलों से इसे बचाया जा सके. इससे पहले 1942 में जापानी हमले की आशंका पर ताजमहल को बांस और हरे कपड़े से ढका गया था. 1965 में इसे काले कपड़े से और 1971 में हरे टेंट और टाट से छिपाया गया था.
बता दें, ताजमहल को ढंकना आसान नहीं था. इसके लिए बहुत तैयारी की गई थी. 1971 में जितने दिन युद्ध चला था, उसके बाद भी ताजमहल ढंका रहा था, क्योंकि उसके ऊपर से कैमोफ्लेज और पत्तियां हटाना आसान नहीं था. रमाकांत बताते हैं कि उस समय अलग ही माहौल था. तनाव था क्योंकि युद्ध हो रहा था. ताजमहल को गुंबद से लेकर मीनारें और नीचे तक पूरा ढंका गया था. हालांकि लोग कहते थे, कि पाकिस्तान ताजमहल पर अटैक नहीं करेगा, क्योंकि यह मुगलिया इमारत है, लेकिन भारत सरकार की व्यवस्थाएं चौकस थीं.
स्थानीय लोगों की यादों में आज भी जिंदा है 1971 का युद्ध
आगरा के ताजगंज निवासी रमाकांत सारस्वत बताते हैं, कि 1971 में वे 21 साल के थे और उनके घर से ताजमहल साफ दिखाई देता था. उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि ताजमहल को कैसे ढंका गया था. उन्होंने बताया कि यह काम आसान नहीं था, काफी तैयारी की गई थी और युद्ध खत्म होने के बाद भी ताज को काफी दिन तक ढंका रखा गया था.
सायरन बजते ही होता था ब्लैकआउट
रमाकांत बताते हैं कि जब भी सायरन बजता था, लोग तुरंत अपने घरों की लाइट बंद कर देते थे. वालंटियर घर-घर जाकर लोगों को ब्लैकआउट का पालन करवाते थे. उस समय लोग बहुत सहयोग करते थे और पूरे शहर का माहौल एकजुटता से भरा हुआ था. रमाकांत का मानना है कि अब भारत पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर है. अगर युद्ध हुआ भी तो पाकिस्तान की इतनी हिम्मत नहीं कि वह आगरा तक पहुंचे. भारत हर स्थिति का मुकाबला करने में पूरी तरह सक्षम है.