अजब गजब मामला! बिस्कुट की जगह मिला नमकीन, जज साहब ने थमा दिया नोटिस, जानिए वजह

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अजब गजब मामला! बिस्कुट की जगह मिला नमकीन, जज साहब ने थमा दिया नोटिस, जानिए वजह


गोंडा: यूपी के गोंडा जिले से एक अजीबो- गरीब मामला सामने आया है, जिसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे. यह मामला आपको हल्का लग सकता है. आप सोचेंगे कि ये मज़ाक है, लेकिन नहीं, ये पूरी तरह सच है. दरअसल, यहां एक जज साहब ने अपने अर्दली को सिर्फ इस बात पर “कारण बताओ नोटिस” थमा दिया कि उसने चाय के साथ बिस्कुट की जगह नमकीन दे दिया. अब ये नोटिस सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. हर तरफ इसी की चर्चा हो रही है.

अर्दली को थमा दिया कारण बताओ नोटिस
गोंडा जिला न्यायालय में कार्यरत एक न्यायाधीश को प्रतिदिन की तरह चाय पेश की गई, लेकिन इस बार उनके सामने बिस्कुट नहीं बल्कि नमकीन रख दी गई. ये बात साहब को इतनी नागवार गुज़री कि उन्होंने सीधे अपने अर्दली राकेश कुमार को नोटिस थमा दिया. इसमें साफ तौर पर लिखा गया कि “जब अलमारी में दो पैकेट शुद्ध बिस्कुट पहले से रखे थे, तो जानबूझकर खराब नमकीन क्यों परोसी गई? यह कार्य लापरवाही और आदेशों की अवहेलना के अंतर्गत आता है.”

सोशल मीडिया पर यूजर्स ले रहे मजा
इस वायरल नोटिस की भाषा देखकर कोई भी सामान्य व्यक्ति चौंक सकता है. न्यायिक कार्यों में जहां अक्सर गंभीर मसलों पर नोटिस दिए जाते हैं, वहीं इस नोटिस की वजह बेहद सामान्य और घरेलू सी प्रतीत होती है. जब से यह मामला सोशल मीडिया पर आया है, लोग इस पर खूब मजे ले रहे हैं. कोई इसे जज साहब का ‘स्नैक्स प्रेफरेंस’ बता रहा है, तो कोई कह रहा है कि “अब चाय के साथ क्या परोसा जाए, इस पर भी कोर्ट ऑर्डर जारी होंगे क्या?”

एक यूजर ने कमेंट किया, “अब तो चाय के साथ नमकीन देने पर धारा 420 लग जाएगी.” एक और यूजर ने लिखा, “इतने सख्त हैं साहब कि नमकीन को भी जुर्म मान बैठे.”

क्या होगी कार्रवाई ?
गौरतलब है कि अदालतों में कामकाज का माहौल हमेशा अनुशासन और गंभीरता भरा होता है. लेकिन ऐसे मामले जब सामने आते हैं तो सवाल भी खड़े होते हैं कि क्या निजी पसंद-नापसंद पर भी आधिकारिक कार्यवाही होनी चाहिए?

सोशल मीडिया पर मचा बवाल
हालांकि जज साहब की मंशा शायद यह रही हो कि कोई आदेश का उल्लंघन न हो और अनुशासन बना रहे, लेकिन जिस तरीके से नोटिस की भाषा लिखी गई और वजह बताई गई, वह सोशल मीडिया पर लोगों के लिए मनोरंजन का विषय बन गई है.

न्यायिक सूत्रों की मानें तो यह मामला कोर्ट की कार्यप्रणाली से बाहर का है. इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए. हालांकि इससे यह जरूर जाहिर होता है कि उच्च पदों पर बैठे अधिकारी अपनी रोज़मर्रा की जरूरतों और प्राथमिकताओं को लेकर भी कितना सजग रहते हैं.



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