कत्थई हो रही हैं धान की पत्तियां? ये संकेत है एक जरूरी पोषक तत्व की कमी, जानें

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अब किसानों को दुकानदारों की सलाह पर बिना सोचे-समझे रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है. जागरूक किसान खुद फसल में आने वाले लक्षणों को पहचानकर तय कर सकते हैं कि खेत में किस पोषक तत्व की कमी है. हर पोषक तत्व की कमी होने पर पौधा संकेत देता है—पत्तों का रंग बदलना, विकास रुकना या फसल में रोग आना जैसे लक्षण देखकर किसान सही उर्वरक का चुनाव कर सकते हैं. इससे न केवल लागत घटेगी, बल्कि उत्पादन भी बेहतर होगा.
उत्तर प्रदेश में किसान कृषि में कई तरह की फसल उगाते हैं. किसान अपने अपने क्षेत्र और मिट्टी के हिसाब से अलग-अलग फसल उगाते हैं. कई किसान धान, गेहूं और गन्ने की फसल उगाते हैं. तो वहीं कई क्षेत्र में किसानों बागवानी में रुझान ज्यादा दिखाई दे रहा है.

किसान फसलों से ज्यादा उत्पादन लेने के लिए रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं. कई बार बिना आवश्यकता के भी किसान कई तरह के उर्वरक खेत में डाल देते हैं. जिसका फायदा होने की बजाय किसानों को नुकसान होता है. किसानों का पैसा भी चला जाता है.

कृषि एक्सपर्ट किसानों को सलाह देते हैं कि वह मृदा स्वास्थ्य की जांच कराए बिना किसी भी रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल खेतों में ना करें. अगर फिर भी किसान ऐसा करते हैं तो वह मृदा स्वास्थ्य को नुकसान होगा. सबसे बड़ी वजह यह है कि उर्वरक विक्रेता किसानों को अपने फायदे के लिए तमाम तरह के उत्पाद बेच देते हैं.

अगर किसान मिट्टी की जांच नहीं कर पाए हैं तो किसान खुद भी मिट्टी में पोषक तत्वों की पहचान कर सकते हैं. मिट्टी में अगर पोषक तत्वों की कमी है तो उसमें खड़ी हुई फसल के पौधों पर उसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं. उन लक्षणों के आधार पर किसान तय कर सकते हैं कि उनके खेत में किस तत्व की कमी है.

मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी की वजह से पौधों की ग्रोथ प्रभावित होती है. इसकी वजह से उत्पादन में गिरावट आती है. किसानों को लागत भी अधिक लगानी पड़ती है. लेकिन किसान मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को पहचान कर इसकी पूर्ति कर सकते हैं.

अगर आपने धान की फसल लगाई है और आप अच्छा उत्पादन लेना चाहते हैं तो फसल की खास देखभाल करने की जरूरत है. धान के पौधों की मध्य शिराएं हरी होने की बजाय कत्थई हो रही है समझिए कि उसमें जिंक की कमी है. ऐसी स्थिति में किसानों को तत्काल जिंक की पूर्ति कर देनी चाहिए. जिंक का इस्तेमाल छिड़काव करके भी किया जा सकता है. इसके अलावा जिंक पाउडर में भी आती है.

धान की फसल में जिंक की कमी होने पर खैरा रोग की समस्या आ सकती है. खैरा रोग अगर फसल को चपेट में लेता है तो किसानों को अधिक लागत लगाने के बावजूद भी उत्पादन कम मिलेगा. ऐसे में किसानों को आर्थिक तौर पर नुकसान होगा. जरूरी है कि किसान लक्षण पहचान कर समय पर जिंक की आपूर्ति करें.