Azamgarh News: 168 साल बाद भी जिंदा है जंगे आजादी की यादें, आजमगढ़ के ‘अंजान शहीद’ में आज भी हैं वो कब्रें

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UP News: आजमगढ़ में भी एक ऐसा गांव है जिसके नाम के पीछे कई अनजान लोगों की शहादत जुड़ी हुई है. यही कारण है कि इस गांव का नाम अपने आप में विशेष हो जाता है. हम बात कर रहे हैं साड़ी तहसील क्षेत्र के अंतर्गत आने वाल…और पढ़ें
1857 में आजादी की पहली क्रांति के दौरान देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह चल रहा था. जंगे आजादी की इस विद्रोह में आजमगढ़ में भी यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. गांव के स्थानीय निवासी मोहम्मद इस्माइल खान बताते हैं कि उस समय अंजान लंगपुर गांव में अंग्रेजों से क्रांतिकारियों का भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी सेवा के छक्के छुड़ा दिए और अंग्रेजी सिपाहियों को मार कर कुएं में फेंक दिया. इसकी खबर मिलने के बाद अंग्रेज आग बबूला हो गए और सेवा की भारी भरकम टुकड़ी को इस गांव में दोबारा भेज दिया. इसके बाद इस लड़ाई में वीर कुंवर सिंह और उनकी सेवा ने भी हिस्सा लिया और अंग्रेजों से भयंकर युद्ध हुआ.
आज भी मौजूद है शहादत की कब्रें
क्रांति की इस लौ में जहां आजमगढ़ के स्वतंत्रता सेनानियों और वीर कुंवर सिंह की सेना ने अंग्रेजों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया तो वही कई क्रांतिकारी को शहादत भी मिली. इस शहादत में अंजान शहीद गांव के ही जहांगीर खान सहित कई सेवा में शामिल कई अनजान लोगों ने अपनी जान गवाई, जिनकी पहचान तक नहीं हो सकी. कुछ स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजी सेना ने गिरफ्तार कर लिया और बगहीडांड गांव में पुल के पास ही उन्हें फांसी पर लटका दिया. इसके बाद अनजाने वीर सैनिकों की उस शहादत को याद करते हुए ‘अंजान लंगपुर का नाम अंजान शहीद हुआ’ और बघेला गांव का नाम बगहीडांड पड़ा. आज भी गांव में उन शहीद वीरों की कब्रें मौजूद हैं जो तकरीबन 168 साल पहले हुई उसे जंग की याद दिलाती है.