ISRO-NASA ने भी मानी गाजीपुर के इस लड़के की साइंस!

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ISRO-NASA ने भी मानी गाजीपुर के इस लड़के की साइंस!


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Ghazipur News: स्वप्निल पांडे ने ऑटोमैटिक सेंसिंग स्ट्रीट लाइट तकनीक विकसित की जिसे ISRO, NASA और नीति आयोग ने सराहा. मई 2023 में उन्हें “Scientist of the Day” अवॉर्ड मिला.

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गाज़ीपुर के स्वप्निल की टेक्नोलॉजी को NASA-ISRO ने भी सराहा!

हाइलाइट्स

  • स्वप्निल पांडे ने ऑटोमैटिक सेंसिंग स्ट्रीट लाइट तकनीक विकसित की.
  • ISRO, NASA और नीति आयोग ने स्वप्निल की तकनीक को सराहा.
  • मई 2023 में स्वप्निल को “Scientist of the Day” अवॉर्ड मिला.

गाजीपुर: भारत के युवा वैज्ञानिक स्वप्निल पांडे ने एक ऐसा इनोवेशन किया है जिसे न सिर्फ ISRO और NASA ने सराहा, बल्कि नीति आयोग ने भी खुलकर सहयोग किया. उनका प्रोजेक्ट “ऑटोमैटिक सेंसिंग स्ट्रीट लाइट टेक्नोलॉजी” आने वाले समय में भारत के हाईवे सिस्टम को ऊर्जा की बचत करने वाला स्मार्ट नेटवर्क बना सकता है. स्वप्निल पांडे बताते हैं कि नीति आयोग और Atal Innovation Mission का उद्देश्य हमेशा से यही रहा है कि देशभर के युवाओं को एक मंच दिया जाए, जहां वे अपने आइडिया को इनोवेशन में बदल सकें. यही कारण था कि इस प्रोजेक्ट को ISRO, NASA और नीति आयोग के जॉइंट प्लेटफार्म पर मौका मिला. इसरो ने उन्हें “Scientist of the Day” के अवॉर्ड से नवाजा था, जो उन्हें मई 2023 में में मिला.

स्वप्निल पांडे की टेक्नीक
स्वप्निल पांडे ने बताया कि भारत में सबसे ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल ट्रांसपोर्ट सेक्टर करता है, खासकर हाईवे पर 24 घंटे जलती रहने वाली स्ट्रीट लाइट्स से. हालांकि, हाईवे पर हर समय गाड़ियां नहीं चलतीं. स्वप्निल ने इस समस्या पर डेटा निकाला और पाया कि इससे भारत सरकार को हर साल हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. इसी समस्या के समाधान के रूप में उन्होंने Motion Sensing Based Lighting System विकसित किया. यह सिस्टम तब काम करता है जब कोई गाड़ी हाईवे पर मूव करती है. गाड़ी की स्पीड और डायरेक्शन को सेंस करते हुए, सिर्फ उसी हिस्से की स्ट्रीट लाइट तेज होती है, बाकी हिस्से की लाइट डिम हो जाती है.

इस तकनीक के फायदे
स्वप्निल पांडे ने बताया कि यह तकनीक न केवल ऊर्जा की भारी बचत कर सकती है, बल्कि सरकारी खर्च में भी कमी ला सकती है. जब स्ट्रीट लाइट्स केवल जरूरत के हिसाब से जलेंगी, तो लाखों रुपए बचाए जा सकते हैं. इससे पर्यावरण पर भी कम दबाव पड़ेगा क्योंकि ऊर्जा की खपत कम होगी. इसके अलावा, यह तकनीक सड़क पर चल रहे लोगों को बेहतर विज़िबिलिटी भी प्रदान करेगी और साथ ही रात के समय स्ट्रीट लाइट्स के द्वारा होने वाली डिस्टर्बेंस को भी कम करेगी. स्वप्निल पांडे कहते हैं, “हमेशा जलती लाइटें लोगों की नींद और आराम में खलल डालती हैं. अगर हम तकनीक की मदद से इसे सेंसिटिव बना दें, तो देश का करोड़ों रुपये का नुकसान रोका जा सकता है.”
अब यह इनोवेशन कई सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ निजी सेक्टर में भी अपनाने की तैयारी में है. स्वप्निल पांडे जैसे युवाओं की पहल से भारत ‘स्मार्ट इंडिया’ की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है.

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