Mathura News: भगवान द्वारकाधीश मंदिर के लिए ऐसे खरीदी गई थी जमीन, जानिए सच्चाई

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Mathura News: भगवान द्वारकाधीश मंदिर के लिए ऐसे खरीदी गई थी जमीन, जानिए सच्चाई


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Mathura News: भगवान द्वारकाधीश मंदिर यमुना के किनारे स्थित है. यहां हर दिन सैलानियों का तांता लगा रहता है. मगर क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर के लिए जमीन कैसे और किससे खरीदी गई थी? ये जमीन एक मुस्लिम शख्स से चां…और पढ़ें

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यमुना के तटवर्ती असकुण्डा बाजार का स्थान चुना गया.

हाइलाइट्स

  • द्वारकाधीश मंदिर की जमीन मुस्लिम शख्स से खरीदी गई थी.
  • इसके अलावा जमीन मथुरा के चौबे जी ने फ्री में दी थी.
  • मंदिर का निर्माण संवत 1871 में पूरा हुआ.

मथुरा: मथुरा के भगवान द्वारकाधीश मंदिर की जमीन 200 साल पहले एक मुस्लिम शख्स से चांदी के सिक्कों में खरीदी गई थी. इसके अतिरिक्त जमीन मथुरा के चौबे जी ने मुफ्त दी. मंदिर का निर्माण संवत 1871 में पूरा हुआ और प्रतिष्ठा के समय सोने-चांदी की वर्षा हुई थी.

द्वारकाधीश मंदिर के लिए यमुना के किनारे असकुण्डा बाजार का एक खास इलाका चुना गया था. यह इलाका आसानी से नहीं मिल पाया था. लोकल 18 से बात करते हुए मंदिर के मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी ने बताया कि यह जमीन करीब 200 साल पहले खरीदी गई थी. उस समय इस जमीन के लिए पारिख जी ने काफी मेहनत और द्रव्य खर्च किया था.

ऐसे खरीदी गई थी जमीन
जहां आज ‘जनाना दरवाजा’ है, उस तरफ की जमीन ‘शर्युद्धीन’ नाम के एक मुस्लिम शख्स के पास थी. बातचीत और समझौते के बाद जमीन का सौदा चांदी के सिक्कों में हुआ था. इतना ही नहीं, जमीन की पूरी सतह को चांदी से ढक दिया गया था ताकि सौदा पक्का हो जाए.

मथुरा के चौबे जी ने फ्री में दी जमीन
मंदिर के लिए और भी जमीन की जरूरत थी, जो मथुरा के एक चौबे जी के पास थी. वह जमीन वहां मंदिर की रोकड़ का कोठा बनने वाली जगह थी. चौबे जी शुरू में जमीन बेचने को तैयार नहीं थे. बाद में उन्होंने पारिख जी से कहा कि अगर वे खुद आकर भिक्षा मांगें तो वह जमीन बिना किसी कीमत के दे देंगे. पारिख जी ने विश्राम घाट जाकर भिक्षा मांगी और चौबे जी ने खुशी-खुशी जमीन भेंट कर दी.

1871 में हुआ था मंदिर का निर्माण
भूमि मिलने के बाद कई सालों की मेहनत के बाद संवत 1871 में मंदिर का निर्माण पूरा हुआ. मंदिर बनने तक भगवान द्वारकाधीश की मूर्ति गोलपाडा के जूना मंदिर के बगीचे में रखी गई थी. मूर्ति की प्रतिष्ठा के लिए बड़ी भव्य सवारी निकाली गई थी, जिसमें सोने और चांदी के पुष्पों की वर्षा की गई.

इस तरह इस विश्व विख्यात मंदिर की ज़मीन एक मुस्लिम शख्स से चांदी के सिक्कों में खरीदकर और एक चौबे जी से भिक्षा मांगकर प्राप्त की गई थी. यह इतिहास आज भी मथुरा के लोगों के लिए गर्व और श्रद्धा का विषय है.

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