Mathura News: 20 करोड़ के स्वर्ण झूले में विराजमान हैं श्रीकृष्ण, जानिए कब और कैसे शुरू हुई झूला झुलाने की परंपरा?

द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण राधा को झूला झूलते दिखाई देते थे. झूले पर बैठकर वह बांसुरी भी बजाते थे. बांसुरी की मधुरता को सुनकर हर कोई उनकी तरफ खिंचा चला आता था. सावन के महीने में भगवान श्री कृष्ण मथुरा आ जाते हैं. मथुरा आने के बाद वह गोपियों के साथ लीला करते हैं, जो द्वापर युग में किया करते थे. सावन आते ही श्री कृष्ण राधा को झूला झूलते हैं. आज भी वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में इस परंपरा का निर्वहन यहां के सेवायत गोस्वामी करते आ रहे हैं.
ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के सेवायत पुजारी श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि ठाकुर जी को सावन के महीने में लाड लडाया जाता है. बाल रूप में सेव होने के कारण ठाकुर जी को उनका पालन अति प्यारा है, इसलिए ठाकुर जी को झूले में झुलाया जाता है. बांके बिहारी को पहली बार 15 अगस्त 1947 को स्वर्ण रजत झूले में विराजमान कर झुलाया गया था. तभी से यह परंपरा लगातार चल रही है. इस झूले में कई किलो सोना-चांदी जड़ा हुआ है और इसका भार 100 किलो है. श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया कि जिस प्रकार श्री कृष्ण राधा जी को झूला झूलते हैं, उसी प्रकार सावन के महीने में भगवान शंकर भी माता पार्वती को झूला झूलते नजर आते हैं.
झूले में विराजमान किए गए थे बांके बिहारी
मंदिर के पुजारी शालू उर्फ श्रीनाथ गोस्वामी ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि 1938 में झूला बनाने की शुरुआत हुई. भगवान बांके बिहारी पहली बार 15 अगस्त 1947 को झूले में विराजमान किए गए थे. शीशम की लकड़ी से यह झूला बनाया गया है. इस पर नक्काशी बहुत ही बारीक तरीके से की गई है.
उन्होंने बताया कि भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा के अंदर एक अद्भुत शक्ति है. बच्चा भी ठाकुर जी की प्रतिमा को उठा सकता है और एक पहलवान ठाकुर जी की प्रतिमा को नहीं उठा सकता. भगवान जी पर कृपा करते हैं, तो भगवान उसके साथ चल देते हैं. जिससे वह परहेज करते हैं, वह चाहे कितना भी बलशाली हो फिर उसके साथ नहीं जाते.
ठाकुर जी को बाल रूप में देखते है
छोटू गोस्वामी ने बताया कि जिस तरह से हम मनुष्यों का शरीर है, उसी तरह से ठाकुर बांके बिहारी का भी शरीर है. उन्हें जो जिस भाव से छूता है या स्पर्श करता है, वह उसे भाव में ढल जाते हैं. अगर हम ठाकुर जी को बाल रूप में देखते है, तो उनका शरीर भी बच्चों के जैसा हो जाता है. जिस प्रकार बच्चे का शरीर छूने पर मुलायम हो जाता है, उसी तरह उनका शरीर भी मुलायम छूने पर महसूस होता है.
झूले में विराजमान होते है बांके बिहारी
बांके बिहारी मंदिर में स्वर्ण झूले की कीमत लगभग 20 करोड़ रुपये है. यह झूला 2200 तोले सोने (25.6 किलो) और 1 लाख तोला चांदी (1166 किलो) से बना है, जिसमें रत्न भी जड़े गए है, 1946 में सेठ हरगुलाल बेरीवाल ने इस झूले का निर्माण करवाया था. यह झूला हरियाली तीज के अवसर पर बांके बिहारी जी को झुलाने के लिए बनाया गया है. इस दिन, भगवान बांके बिहारी गर्भगृह से निकलकर आंगन में डाले गए झूले में विराजमान होते है. यह झूला न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह एक कलात्मक कृति भी है. इसमें सोने, चांदी और रत्नों का उपयोग इसे एक शानदार और आकर्षक रूप देता है.