खपरैल के कच्चे मकानों की छत में लगी होती है बड़ेर, जानें कैसे करते हैं प्रयोग

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Sultanpur News Hindi: भारत में पक्के मकानों की वृद्धि के बावजूद गांवों में खपरैल कच्चे मकान मिलते हैं. बड़ेर लकड़ी का टुकड़ा होता है जो कच्चे मकान की छत को सहारा देता है. सागौन, बबूल, महुआ की लकड़ी का उपयोग होत…और पढ़ें
mud houses
हाइलाइट्स
- भारत में पक्के मकानों की वृद्धि के बावजूद गांवों में खपरैल मकान मिलते हैं.
- बड़ेर लकड़ी का टुकड़ा होता है जो कच्चे मकान की छत को सहारा देता है.
- सागौन, बबूल, महुआ की लकड़ी का उपयोग बड़ेर बनाने में होता है.
सुल्तानपुर: पिछले 10 वर्षों में भारत में पक्के मकानों के निर्माण में तेजी आई है और कच्चे मकान लगभग खत्म होते जा रहे हैं. हालांकि, गांवों में अभी भी कुछ जगहों पर खपरैल कच्चे मकान मिल जाएंगे. आज हम जानेंगे कि इन खपरैल कच्चे मकानों की छत को कैसे रोका जाता था. इसके साथ ही हम जानेंगे कि बड़ेर क्या होती है और इसका कच्चे मकानों में कैसे इस्तेमाल किया जाता है.
इसे कहते हैं बड़ेर
स्थानीय निवासी माता प्रसाद मिश्र ने बताया कि बड़ेर लकड़ी का एक लंबा टुकड़ा होता है जिसे नापकर बनाया जाता था. इस बड़ेर को मिट्टी के एक पिलर से दूसरे पिलर पर रखा जाता था और उसके ऊपर टोटा, पल्ला आदि रखकर खपरैल छत को रोका जाता था.
इस तरह करता है काम
आसान भाषा में कहें तो जैसे पक्के मकान में छत के नीचे लोहे की सरिया की बीम बनाई जाती है, वैसे ही कच्चे मकान में लकड़ी की बड़ेर बनाई जाती थी. इसके ऊपर बांस के टुकड़े और बांस की फट्टी लगाई जाती थी और फिर मिट्टी का लेप किया जाता था. इसके बाद पक्की मिट्टी के कपड़े छत का आकार देते थे.
इस तरह होता है बड़ेर का आकार
वैसे तो बड़ेर का आकार चार कोनों वाला होता है, लेकिन ज्यादातर जगहों पर इसका आकार गोल होता है. इसके गोल होने की वजह है कि इसके दोनों तरफ त्रिकोण आकार में खपरैल की छत बनती है. अगर बड़ेर गोल होगी तो छत बनाने में आसानी होगी.
इन लकड़ियों की होती थी बड़ेर
बड़ेर को ऐसी लकड़ी से बनाया जाता था जो बहुत सख्त और मजबूत होती थी क्योंकि पूरे छठ का भार बड़ेर पर ही टिका होता था. इसलिए सागौन, बबूल, महुआ जैसी मजबूत लकड़ियों का बड़ेर बनाया जाता था.
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