हजारों साल पुराना है मां भवानी का यह मंदिर, यहां दिन में तीन बार रूप बदलती है माता, पांडवों ने की थी स्थापना

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Chaitra Navratri 2025: अमेठी के अहोरवा भवानी मंदिर का इतिहास पांडव काल से जुड़ा है. मान्यता है कि मां भवानी दिन में तीन बार रूप बदलती हैं. अर्जुन को मां ने विजयश्री का वरदान दिया था. भक्तों की मनोकामनाएं यहां प…और पढ़ें
शक्तिपीठ माता अहोरवा भवानी की मूर्ति
हाइलाइट्स
- अमेठी में स्थित अहोरवा भवानी मंदिर पांडव कालीन है.
- मां भवानी दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती हैं.
- मंदिर में संस्कृत महाविद्यालय भी संचालित होता है.
आदित्य कृष्ण/अमेठी: प्रदेश के कई जिलों में ऐसे शक्तिपीठ और माता के मंदिर हैं, जो अपने आप में भक्तों के लिए आस्था का केंद्र हैं. उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में भी एक ऐसा शक्तिपीठ मंदिर है, जो पांडव कालीन मंदिर के रूप में जाना जाता है. यह मंदिर शताब्दी वर्ष प्राचीन पांडवों के द्वारा स्थापित किया गया. जिसकी मान्यता आज भी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है. हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के अमेठी में मां अहोरवा भवानी के प्रसिद्ध मंदिर की. इस मंदिर का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा हुआ है. इसकी स्थापना खुद पांडवों ने की थी. देवी मां की महिमा अपरंपार है, जिससे यहां दूर-दर से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि मां भवानी के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है. इतना ही नहीं, अहोरवा भवानी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं. वर्तमान समय में भी यह मंदिर भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है.
पांडवों ने भी जंगल में बिताई थी रात
अमेठी जिले का यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था केंद्र है. यह काफी प्राचीन और ऐतिहासिक भी है. शताब्दी वर्ष प्राचीन इस मंदिर में द्वापर युग में जब पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान यहां से गुजरे थे. उस दौरान उन्होंने यहीं के जंगल में रात बिताई थी. अर्जुन को मां भवानी ने स्वप्न में दर्शन दिये थे, तो उन्होंने उनसे विजयश्री का वरदान मांगा था. जब मां भवानी ने अर्जुन को वरदान दिया, तो पांडवों ने यहां इस मंदिर की स्थापना कराई थी. मान्यता है कि मां भवानी के आशीर्वाद से नि:संतानों को संतान की प्राप्ति होती है.
भक्तों को अलग-अलग रूप में दर्शन देती है माता
अहोरवा मंदिर के बारे में मान्यता है कि सुबह से शाम तक मां भवानी तीन बार अपना स्वरूप बदलती हैं. सुबह मां भवानी बाल अवस्था, दोपहर में युवावस्था और शाम से अगले दिन सुबह तक मां भवानी वृद्धावस्था में नजर आती हैं. पांडवों के द्वारा इस मंदिर की स्थापना के बाद राजा शिव बहादुर सिंह ने इस मंदिर का विस्तार करवाया था. मंदिर परिसर में ही संस्कृत महाविद्यालय भी संचालित किया जाता है.
क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी
मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित शिवकुमार तिवारी ने बताया कि द्वापर युग के इस मंदिर की प्राचीन मान्यताएं हैं पहले यहां जंगल हुआ करता था शेर चीते रहते थे जब पांडव अज्ञातवास के दौरान आए और उन्होंने शिकार के दौरान अपना बढ़ चलाया और शेर को मारना चाहा तो माता रानी प्रकट हो गई और उन्होंने मनवांछित फल मांगने की बात कही जिसके बाद अर्जुन ने यहां पर क्षमा याचना कर मां भवानी की मूर्ति स्थापना की बात कही और यहां पर उन्होंने माता की मूर्ति को स्थापित कर पूजा पाठ किया और अपने कार्य में सफल हुए. मंदिर के पुजारी ने कहा कि यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है यहां का नीर बीमारियों के लिए औषधि का काम करता है और भक्तों को यहां पर जो भी मनोकामना सच्चे दिल से मांगी जाए वह पूरी होती है
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