ना ब्रश, ना रंग… दीपक की लौ से बनी ये पेंटिंग बयां करती है अहमदाबाद हादसे की

अलीगढ़- कला केवल रंगों, ब्रश और कैनवास की दुनिया तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह इंसानी भावनाओं की सबसे गहरी परतों को उजागर करने का एक सशक्त माध्यम भी बन जाती है. अलीगढ़ की जानी-मानी कलाकार और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. लक्ष्मी गौतम ने इस बात को एक मार्मिक उदाहरण के ज़रिए सामने रखा है. हाल ही में अहमदाबाद में हुए एक भयावह विमान हादसे को उन्होंने अपनी कला में इस तरह जीवंत किया कि दर्शक सिर्फ देख नहीं पाए, बल्कि महसूस भी कर सके.
अहमदाबाद में हुए इस विमान हादसे में 200 से ज्यादा लोग जिंदा जलकर मौत के शिकार हो गए थे. इस दर्दनाक हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. लेकिन डॉ. गौतम ने इसे सिर्फ एक समाचार के रूप में नहीं देखा, बल्कि एक मानवीय त्रासदी के रूप में महसूस किया. उन्होंने इस त्रासदी को ब्रश और रंगों से नहीं, बल्कि दीपक की लौ की मदद से कैनवास पर उकेरा.
दीपक की लौ से उकेरी गई कलाकृति
यह पेंटिंग अपने आप में अद्भुत है. इसमें कोई पारंपरिक रंग या ब्रश का उपयोग नहीं किया गया है. बल्कि दीपक की जलती हुई लौ से आकृतियां बनाकर हादसे के भयावह क्षणों को दर्शाया गया है. इस तकनीक को कला की दुनिया में ‘फ्लेम पेंटिंग’ भी कहा जाता है, जो बेहद दुर्लभ होती है. इस चित्रकला में एयर इंडिया के विमान की छवि, उसके भीतर फंसे यात्री और उस क्षण का दर्द प्रतीकों के माध्यम से दिखाया गया है.
डॉ. गौतम की इस कलाकृति में दीपक की लौ को केवल रौशनी के प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि जीवन और विनाश दोनों के संकेत के रूप में दर्शाया गया है. यह लौ एक तरफ जहां रोशनी देती है, वहीं दूसरी ओर वही अग्नि भयंकर विनाश भी ला सकती है. यह पेंटिंग हमें याद दिलाती है कि जिंदगी बेहद अनिश्चित है, और कभी भी, किसी के साथ कुछ भी घट सकता है.
दृश्य नहीं, एक चेतावनी
डॉ. गौतम का कहना है कि यह पेंटिंग उन्होंने सिर्फ एक दृश्य के तौर पर नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी के रूप में तैयार की है. यह याद दिलाने के लिए कि जरा-सी लापरवाही, चाहे वह तकनीकी हो या मानवीय, पूरी जिंदगी को जलाकर राख कर सकती है.
इस अनोखी पेंटिंग ने न केवल कला जगत को चौंकाया है, बल्कि उन लोगों को भी गहराई से छू लिया है, जिन्होंने ऐसे हादसों में अपने अपनों को खोया है. यह पेंटिंग किसी भी दर्शक को कुछ पल के लिए ठहर जाने पर मजबूर कर देती है. इसमें भावनाओं की एक ऐसी लौ जलती है जिसे आंखों से नहीं, दिल से महसूस किया जा सकता है.
डॉ. लक्ष्मी गौतम केवल एक चित्रकार नहीं हैं. वे सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से जुड़ी रही हैं. उनकी कलाकृतियों में संवेदनशीलता, करुणा और चेतना की गहराई स्पष्ट दिखती है. उनकी यह रचना भी उसी भावभूमि से निकली है. जहां कला, समाज और संवेदना आपस में घुलमिल जाती हैं.
भावनाओं से संवाद करती कला
इस पेंटिंग की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह दर्शकों से संवाद करती है. न रंगों की जरूरत होती है, न शब्दों की. दीपक की लौ से बना हर आकार, हर रेखा, एक कहानी कहती है. यह उन 200 लोगों की अधूरी जिदगियों और असमय हुई विदाई की एक चुप सी चीख है, जिसे समझने के लिए केवल नजरें नहीं, दिल चाहिए.