Nag Panchami: 200 साल पुराने इस मंदिर में नाग-नागिन करते हैं शिवलिंग की रक्षा

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Nag Panchami: 200 साल पुराने इस मंदिर में नाग-नागिन करते हैं शिवलिंग की रक्षा


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Nag Panchami 2025: कानपुर के मालरोड पर स्थित खेरेपति बाबा मंदिर, जिसे शेषनाग मंदिर भी कहते हैं, 200 साल पुराना है. नाग पंचमी पर यहां हजारों भक्त आते हैं. मान्यता है कि यहां पूजा से कालसर्प दोष और भय दूर होते है…और पढ़ें

हाइलाइट्स

  • खेरेपति बाबा मंदिर 200 साल पुराना है.
  • इस मंदिर में नाग पंचमी पर हजारों भक्त आते हैं.
  • इस मंदिर में पूजा से कालसर्प दोष और भय दूर होते हैं.
कानपुर: सावन में शिवालयों में जगह–जगह भक्तों की भीड़ उमड़ती है. इन्हीं में से एक है कानपुर के मालरोड पर स्थित खेरेपति बाबा मंदिर, जिसे लोग शेषनाग मंदिर के नाम से भी जानते हैं, नाग पंचमी के मौके पर हमेशा चर्चा में रहता है. यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, रहस्य और परंपरा का ऐसा संगम है जो इसे खास बनाता है. मान्यता है कि यहां नाग देवता की विशेष कृपा है और जो भी भक्त सच्चे मन से यहां आता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है.

200 साल पुराना है खेरेपति मंदिर
यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना माना जाता है. मान्यता है कि यहां इच्छाधारी नाग-नागिन स्वयं शिवलिंग की रक्षा करते हैं. पुराने किस्सों के अनुसार इस स्थान पर पहले नागों का डेरा था और उन्होंने यहां कठोर तपस्या की थी. तभी से यह मंदिर नाग देवता की आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है.

कभी जिंदा सांपों से होता था भगवान का श्रृंगार
एक समय था जब नाग पंचमी के दिन इस मंदिर में भगवान शिव का श्रृंगार जिंदा सांपों से किया जाता था. सपेरे अपने साथ नाग-नागिन लेकर आते थे और उन्हें शिवलिंग के पास रखकर पूजा करते थे. हालांकि अब यह परंपरा बंद हो चुकी है, लेकिन आज भी नाग पंचमी पर देश के अलग-अलग हिस्सों से सपेरे यहां पहुंचते हैं. वे अपने साथ लाए हुए सांपों को दिखाकर पूजा करते हैं. इस दिन मंदिर में एक मेले जैसा माहौल रहता है. सुबह से ही लोग लंबी कतारों में लगकर दूध, फूल, बेलपत्र और प्रसाद चढ़ाते हैं. मंदिर के पुजारी शिवजी और नाग देवता की विशेष पूजा करवाते हैं.

पूजा से दूर होती हैं बाधाएं
भक्तों का मानना है कि नाग पंचमी के दिन इस मंदिर में पूजा करने से कालसर्प दोष, डरावने सपने, मन का भय और स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों से छुटकारा मिलता है. यहां सिर्फ मूर्तियों की नहीं, बल्कि जीवित सांपों की पूजा की जाती है और उन्हें दूध चढ़ाया जाता है. कहा जाता है कि एक बार बिठूर के राजा नानाराव पेशवा भी यहां पूजा करने आए थे. इसके बाद यह मंदिर और भी प्रसिद्ध हो गया. आज यह मंदिर कानपुर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिना जाता है.

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